
दिल्ली के प्रभु दयाल पब्लिक स्कूल में टॉप किया। फिर डीपीएस आरकेपुरम में पढ़ी। दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (डीसीई) (अब दिल्ली टेक्नीकल यूनिवर्सिटी) से इंजीनियरिंग की। सॉफ्टवेयर कंपनी में नौकरी की। फिर बच्चों को आईटी व मैथ्स पढ़ाया, लेकिन कुछ भी नहीं आया रास। बच्चों की सुरक्षा को लेकर इतनी चिंतित हो उठी कि खुद का ही कर लिया कारोबार। यहां बात हो रही है कोआला कैब की। ऐसे कैब की जहां 18 साल से अधिक उम्र के पुरुष का बैठना मना है। ऐसे कैब की जिसे सिर्फ महिलाएं चलाती हैं। हम बात कर रहे हैं कोआला की को-फाउंडर शैलजा मित्तल की। मनी भास्कर के राजीव कुमार को दिए अपने इंटरव्यू में मित्तल ने कई चौंकाने वाली जानकारी दी। उनसे ही सुनते हैं उनकी कहानी प्रश्नः कैसे शुरू किया कोआला कैब उत्तरः बात जनवरी, 2017 की है। मेरी बेटी मेल ड्राइवर के साथ वैन में स्कूल जाती थी। एक दिन वह ड्राइवर नहीं आया। उसने दूसरे ड्राइवर को भेज दिया। इस पर मैंने कहा कि मैं तो आपको जानती नहीं हूं, सो मैंने अपनी बेटी को उस दूसरे ड्राइवर के साथ नहीं जाने दिया। मैं खुद बेटी को स्कूल छोड़ने गई। स्कूल छोड़ने के बाद पास के ही एक कॉफी शॉप में बैठी-बैठी यह सोचने लगी कि हम अपने बच्चों को किस-किस के हाथ में छोड़ते हैं। यही से मुझे आइडिया आया कि यह एक बहुत बड़ा खाली एरिया है जिसे टैप किया जा सकता है। फिर क्या किया उत्तरः मेरे दिमाग में यह बात आई कि जब मैं गाड़ी चला सकती हूं तो और भी महिलाएं चलाती होंगी। क्यों न उनके साथ कैब सर्विस की शुरुआत की जाए क्योंकि कहीं न कहीं मेरे अंदर एक फिलिंग थी कि महिला ड्राइवर के साथ बच्चे अधिक सुरक्षित हैं। फिर हमने रिसर्च शुरू किया। और 1 फरवरी को रोबोटिक्स क्लास से रिजाइन कर दिया। जून 2017 के आसपास दो गाड़ियों से शुरू किया। 10 लाख रुपये की शुरुआती पूंजी लगाई थी। वो भी फाइनेंस करवाया था।
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